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रविवार, 29 जून 2014

चश्मा (लघु कथा )



“देखो नेहा वो अभी भी घूर रहा है” झूमू ने नेहा का हाथ पकडे-पकडे हरकी पैढ़ी पर  गंगा में डुबकी लगाते हुए कहा|”बहुत बेशर्म है अभी भी बैठा है इसको पता नहीं किस से पाला  पड़ा है, इसका मजनू पना अभी उतारते हैं शोर मचाकर” उसको थप्पड़ दिखाती हुई नेहा आस पास के लोगों को उकसाने लगी|
इसी बीच में न जाने कब झूमू का हाथ छूट गया और वो तीव्र बहाव में बहने लगी|छपाक के साथ आवाज आई और कुछ ही देर में वो युवक झूमू को बचाकर बाहर निकाल लाया|
थोड़ी दूर  खड़ा एक पुलिस वाला भी आ गया और  “बोला इन साहब का शुक्रिया अदा करो ये इंटरनेश्नल स्वीमर चेम्पियन स्वप्निल झा जी  हैं जो हरिद्वार घूमने आये थे और  निःस्वार्थ एक महीने से लोगों की हेल्प कर रहे हैं न जाने कितने डूबते हुए  लोगों को बचा चुके हैं” |

अपलक देखती नेहा को वो युवक  बोला “ मैडम अपनी आँखों से  ये चश्मा उतारिये जो सिर्फ एक ही रंग देखता है  दुनिया में और भी रंग हैं” !!!!          

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